चलो एक लंबी ड्राइव पे चलें
रास्ते और मंजिल से बेफ़िकर
एक बार बिना किसी मतलब के चलें
कुछ दूर चल कर तुम
सुकून की तरफ मोड़ लेना
मन करे तो वो अपना
पुराना गाना भी लगा लेना
आज हर बात की छूट है
हाँ तुम गुनगुना भी सकते हो
अपनी ही तो गाड़ी है
सुरों को तोड़ मरोड़ भी सकते हो
उन जंजीरों को फेंक देना
ख्वाहिशों को जो जकड़े हुए हैं
उन कचरे के डिब्बों में
जो रस्ते के मोड पर पडे़ हुए हैं
कभी सड़क पर
कभी थोड़ा उड़ते हुए
बादलों को अपनी सासों में रखना
अपनी रफ्तार तेज
और समय की रफ्तार धीमी रखना
वो देखो वहां रोशनी है
हंसी के कहकहे भी सुनी है मैंने
चलो उस तरफ चलें
रास्ते और मंजिल से बेख़बर
अपने बचपन में चलें
चलो एक लंबी ड्राइव पे चलें
चलो खयालों कि लंबी ड्राइव पे चलें
चलो अपने बचपन में चलें
Category: Hindi poem
सोई धूप

वो आई धूप
बंद खिड़कियों के शीशों से
कमरे कि देहलीज़ लांघ कर
वो लाई धूप
उस दूर जलती आग कि आंच
हथेली में बचा कर
किरनों की गुस्ताख हाथों ने
चुपके से मला
वो आलसी गर्माहट मेरे गालों पर
दूर से आई आंच
मेरे पल का हिस्सा बन गई
कुछ कहा नहीं
पर कुछ एहसास सा दे गई
कुछ कहते कहते
यूँ आंख सी लग गई
कुछ देर मेरे साथ
वो धूप भी सो गई